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गुरूदेव ने बताया कल्पवास का महत्व और विशेषताएं

बसे पहले समझें कि कल्पवास का अर्थ क्या होता है। इसका मतलब है एक माह तक संगम के तट पर रहते हुए वेदाध्ययन और ध्यान पूजा करना। इन दिनों प्रयागराज में कुम्भ मेले का आरंभ भी हो चुका है एेसे में में कल्पवास का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से प्रारंभ होकर माघ माह के 12वें दिन तक किया जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है जितना पुण्य मिलता है।

कल्पवास के लिए प्रयाग में संगम के तट पर डेरा डाल कर भक्त कुछ विशेष नियम धर्म के साथ महीना व्यतीत करते हैं। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास आरंभ करते हैं। मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है। संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को कल्पवास कहा जाता है। कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिलती है। महाभारत के अनुसार सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल बराबर पुण्य माघ मास में कल्पवास करने से ही प्राप्त हो जाता है। इस अवधि में साफ सुथरे श्वेत या पीले रंग के वस्त्र धारण करना उचित रहता है। शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है वहीं तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है।

पुराणों में बताया गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करें। महाभारत के एक प्रसंग में बताया गया है कि मार्कंडेय ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है, आैर जो कोर्इ एक महीना, इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग में स्थान सुरक्षित हो जाता है।

गुरूदेव ने बताया एकादशी व्रत की महिमा

यह संसार भोग-भूमि और मानव योनि भोग-योनि है इसलिए मनुष्य की स्वाभाविक रुचि भोगों की ओर ही रहती है । मनुष्य यदि भोगों में ही लिप्त रहेगा तो वह इस संसार में आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो सकेगा । संसार में सब कार्यों को करते हुए भी कम-से-कम पक्ष में एक बार मनुष्य भोगों से अलग रहकर स्व में स्थित रहे और अपने मन व चित्त को सात्विक रखकर भगवान की प्राप्ति की ओर मुड़ सके इसके लिए एकादशी व्रत का विधान किया गया है ।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चन्द्रमा की एकादश (ग्यारह) कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । चन्द्रमा का प्रभाव शरीर और मन पर होता है, इसलिए इस तिथि में शरीर की अस्वस्थता और मन की चंचलता बढ़ जाती है । इसी तरह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य की एकादश कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है । इसी कारण उपवास से शरीर को संभालने और इष्टदेव के पूजन से चित्त की चंचलता दूर करने और मानसिक बल बढ़ाने के लिए एकादशी का व्रत करने का नियम बनाया गया है ।

देव दिवाली का महादेव से है गहरा संबंध: सद्गुरूनाथ जी महाराज

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया. इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया.

ब्रह्मा जी ने त्रिपुरासुर को वरदान दिया कि जब निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में में होगी और असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही उनकी मृत्यु होगी. इसके बाद त्रिपुरासुर का आतंक बढ़ गया. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया.

ऐसे हुआ त्रिपुरासुर का वध

पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने.  फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. त्रिपुरासुर का अंत हो गया. तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है.

काशी से देव दिवाली का संबंध

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध हुआ था. इसकी प्रसन्नता में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे. फिर गंगा स्नान के बाद दीप दान कर खुशियां मनाई. इसी दिन से पृथ्वी पर देव दिवाली मनाई जाती है.

देव दिवाली के दिन स्नान करने के दौरान ‘गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।। ‘ मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इससे व्यक्ति को सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है। 

सद्गुरूनाथ जी महाराज ने बताया रूद्राक्ष की अनंत महिमा

इंदौरः सद्गुरूनाथ जी महाराज द्वारा दिव्य शक्ति पीठ इंदौर (मध्य प्रदेश) में 3 नवंबर से 9 नवंबर तक सायं 4 बजे से 7 बजे तक सौभाग्य श्री शिवमहापुराण कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। शिव महापुराण कथा के आयोजक हैं त्रिवेदी एवं त्रिवेदी परिवार एवं एवं सद्गुरूनाथ धाम परिवार तथा इस धार्मिक आयोजन के सह आयोजक है। अंकिता मनीष पटेल (सक्षम इवेंट एंड डेकोरेटर्स) एवं पटेल परिवार।
पांचवे दिन भी सद्गुरूनाथ जी महाराज द्वारा शिवमहापुराण कथा की अमृतवर्षा लगातार जारी है। पहले दिन से ही कथा में लोगों का गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है। इंदौर ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न प्रांतों से शिवमहापुराण कथा का श्रवण करने के लिए लोगों का आना निरंतर जारी है।

सद्गुरूनाथ जी महाराज की प्रसिद्धि इतनी है कि हर कोई इनके द्वारा सुनाए जा रहे शिवमहापुराण कथा एवं दुःख निवारण शिविर के बार में जानता है। देश के विभिन्न प्रांतों में जहां भी गुरूदेव का आगमन होता है। लोग अपनी समस्या लेकर गुरूदेव के पास पहुंचते हैं और सद्गुरूनाथ जी महाराज किसी को निराश नहीं करते हैं। हर प्रकार की समस्या का समाधान गुरूदेव चुटकी बजाते ही कर देते हैं। इसलिए देश के हर राज्य के लोगों से सद्गुरूनाथ जी महाराज का आत्मीय लगाव रहता है।
इन्होंने सनातन धर्म के ध्वज को शिव महापुराण कथा के द्वारा जन-जन तक पहुंचाने का जो भगीरथ प्रयास किया है। वो काबिलेतारीफ है। कथा में आए हुए भक्तजन जब गुरूवर के मुख से शिवमहापुराण कथा का श्रवण करते हैं तो भाव-विभोर होकर शिवभक्ति में लीन हो जाते हैं और नाचने-गाने लगते हैं।

कथा के दौरान सद्गुरूनाथ जी महाराज ने रूद्राक्ष के महत्व पर भी प्रकाश डाला और बताया कि पुराणों में रुद्राक्ष को देवों के देव भगवान शिव का स्वरूप ही माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रु से हुई है। रुद्राक्ष पहनने से इंसान की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। जो इसे धारण कर भोलेनाथ की पूजा करता है उसे जीवन के अनंत सुखों की प्राप्ति होती है।
गुरूदेव ने बेलपत्र के गुणों को बताया और कहा कि शिव भगवान को दूध और बेलपत्र दोनों बहुत पसंद है। उन्होंने ये भी कहा कि बेलपत्र को ऊपर की जेब में रखने से दिल में रक्तप्रवाह ठीक बना रहता है।

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मनुष्य जन्म होने के लाभ बताते हुए सद्गुरूनाथ जी महाराज ने शबरी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि शबरी श्री राम के रास्ते में पड़ने वाले कंकड़ को बीनकर हटा देती थी। बाद में उन्हें प्रभु श्रीराम ने दर्शन भी दिया और उनके जूठे बेर भी खाए।

शिव महापुराण कथा: सद्गुरूनाथ जी महाराज ने लोगों को बताया जीवन जीने क सिद्धांत

इंदौर: दिव्यदर्शी, धार्मिक गुरू, प्रसिद्ध कथावाचक सद्गुरूनाथ जी महाराज द्वारा दिव्य शक्ति पीठ मंदिर इंदौर में सुनाए जा रहे शिव महापुराण कथा में लगातार शिवभक्तों की भीड़ उमड़ रही है क्षेत्र के लोगों का शिवभक्ति के प्रति उत्साह देखते ही बनता है। आयोजकों का अथक प्रयास है कि दूरदराज से आए हुए लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। सद्गुरूनाथ जी महाराज द्वारा सुनाए जा रहे कथा में लोग इस प्रकार शिवभक्ति में मग्न हो जाते हैं कि उन्हें समय का पता ही नहीं चलता कि कब कथा का समापन हो गया। गुरूदेव इतने सुंदर ढंग से कथा सुनते हैं कि लोग भाव-विभोर होकर नाचने लगते हैं।

कथा के दौरान गुरूदेव ने अमीर और गरीब के बीच बढ़ रही खाई के विषय में प्रकाश डाला और बताया कि गरीब होना कलयुग में बहुत दुःख की बात है। गरीब आदमी का न कोई रिश्तेदार होता है, न कहीं पर इसको मान-सम्मान दिया जाता है। ये सब आपके पूर्व जन्म फल होता है इसलिए भोलेनाथ की शरण में जाओ इनकी पूजा अर्चना करो क्योंकि शिव भक्तों का तो काल भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता। आपकी गरीबी और छोटी-मोटी समस्या तो भोलेनाथ अनायास ही दूर कर देंगे। जरूरत है उन पर पूर्ण विश्वास रखने की।

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भक्तजनों को कथा का श्रवण कराते हुए सद्गुरूनाथ जी महाराज ने कहा कि व्यक्ति का पूरा जीवन यह जानने में लग जाता है कि उसका जन्म क्यों हुआ ? हकीकत यह है कि हमारा जन्म अपने पूर्व जन्म के प्रतिफल को पाने और भगवान का भजन करने के लिए हुआ है। यदि हमने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किए होंगे तो इस जन्म में प्रतिफल के रूप में हमें आनंद की प्राप्ति होगी।

शिव महापुराण कथा का श्रवण करने से भवसागर पार हो जाती है सात पीढ़िया: सद्गुरूनाथ जी महाराज

प्रसिद्ध शिवभक्त, अध्यात्मिक गुरू सद्गुरूनाथ जी महाराज द्वारा दिव्य शक्ति पीठ मंदिर इंदौर में सुनाए जा रहे शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन काफी संख्या में शिवभक्तों ने कथा स्थल पर आकर गुरूदेव के मुखारविन्द से कथा सुनने का सौभाग्य पाया। पूरा कथा स्थल ऊँ नमः शिवाय और गुरूदेव की जय के जयकारे से गूंजता रहा। सद्गुरूनाथ जी महाराज की एक झलक पाने के लिए शिवभक्तों में होड़ मची थी।
ज्ञात हो कि प्रसिद्ध कथावाचक सद्गुरूनाथ जी महाराज प्रेमेश्वर महादेव की प्रेरणा से संपूर्ण भारतवर्ष में शिवभक्ति की अलख जगा रहे हैं। देश ही नहीं बल्कि विदेशों के काफी लोग भी सद्गुरूनाथ जी महाराज की दिव्य और दैवीय शक्ति के कायल हैं। लोगों की हर प्रकार की समस्या को सद्गुरूनाथ जी महाराज चुटकी बजाते ही दूर कर देते हैं।


कथा के दूसरे दिन सद्गुरूनाथ जी महाराज ने भगवान शिव के विशेष गुण का वर्णन किया और मोक्षदायक पुण्य क्षेत्रों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि शिव महापुराण कथा सुनने से विघ्नों का नाश होता है। वहीं व्यक्ति के जीवन में कल्याण की प्राप्ति होती है। शिवमहापुराण कथा के दौरान भगवान शिव के पौराणिक कथाओं को सुन श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए।

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सद्गुरूनाथ जी महाराज ने बताया कि शिव महापुराण कथा कराने से कई पीढ़ियां संवर जाती हैं। साथ ही आने वाली सात पीढ़ी भवसागर पार हो जाती है और जिस जगह कथा का आयोजन होता है, वहां आत्माएं व जीव-जंतु को मुक्ति मिल जाती है। जो पुण्य आत्मा इस कथा का श्रवण करती है, उसके पूर्वजों को भी मुक्ति मिलती है। साथ ही उन्हें इस सांसारिक भ्रमण से छुटकारा मिल जाता है। उनका मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। हर व्यक्ति को प्रतिदिन थोड़ा समय निकालकर शिव नाम का सुमिरन अवश्य करना चाहिए।

शिवमहापुराण कथा का श्रवण करने वाले लोग होते हैं भाग्यशाली: सद्गुरूनाथ जी महाराज

रम पूज्य प्रसिद्ध शिवभक्त, अध्यात्मिक गुरू सद्गुरूनाथ जी महाराज के श्रीमुख से सौभाग्य श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन दिव्य शक्ति पीठ मंदिर, इंदौर (मध्य प्रदेश) में 3 नवंबर से 9 नवंबर तक सायं 4 बजे से 7 बजे तक किया जा रहा है। कथा के पहले दिन इंदौर एवं इसके आसपास के क्षेत्रों से काफी संख्या में शिवभक्तों ने सद्गुरूनाथ जी महाराज के श्रीमुख से दिव्य कथा का श्रवण किया।

कथा में आए हुए लोगों ने बताया कि जिस प्रकार सद्गुरूनाथ जी महाराज शिव महापुराण कथा वाचन करते हैं उसको सुनने का एक अलग ही आनंद है। गुरूदेव के मुख से एक दिव्य तेज हर वक्त मौजूद रहती है। कथा के दौरान हर वक्त ऐसा लग रहा था कि स्वयं महादेव वहां मौजूद हो।
कथा के दौरान गुरूदेव ने बताया कि कलयुग में शिव महापुराण की कथा मोक्ष और मुक्ति प्रदान करने वाली है इसको श्रवण करने से मानव का हर प्रकार से भला होता है। शिवमहापुराण कथा का जो व्यक्ति श्रवण करता है उसके सारे दुःख, क्लेश दूर हो जाते हैं। सद्गुरूनाथ जी महाराज ने कहा कि शिव महापुराण कथा में आकर भोलेनाथ की अद्भुत लीला को सुनना यह पुण्य कर्मो से ही प्राप्त होता है।
सद्गुरूनाथ जी महाराज ने कथा के दौरान बताया कि शिव महापुराण कथा का श्रवण करने से मन पूरी तरह से एकाग्रचित हो जाता है। मन में किसी भी प्रकार की दुविधा नहीं रहती है और असीम शांति शांति का अनुभव लोग करने लगते हैं।

रिश्ते हैं सुख का सार, इन्हें रखें संभाल कर: सद्गुरूनाथ जी महाराज

सद्गुरूनाथ जी महाराज ने सत्संग के दौरान जिंदगी में बेहतर रिश्ता बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि रिश्तेदारों से अच्छे संबंध अनमोल पूंजी है। समझदार लोग इस बात को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए वे छोटी-छोटी बातों को लेकर उनसे मनमुटाव नहीं करते। अच्छे रिश्तों के लिए कुछ मूल मंत्र हैं, जो संस्कारी लोग भली-भांति जानते हैं इसके लिए उन्हें न कॉलेज की डिग्रियों की जरूरत होती है, न कंप्यूटर के ज्ञान की बल्कि वे स्वतः ही उन्हें सहेजकर रखते हैं और आदतन उन्हें निभाते हुए मजबूत बनाते हैं यह उनके खून में शामिल होता है। 

आज के भौतिकतावादी युग में जबकि परंपरा से मानी जा रही नैतिकता, मानवीय मूल्यों पर सवाल उठाती नई पीढ़ी अपनी मनमानी पर तुली है, उनके लिए स्वार्थ से बढ़कर कुछ नहीं, जिसकी आग में रिश्ते-नाते सब जलकर खाक करने पर वे उतारू हैं, रिश्तों के महत्व को जान लेना और भी जरूरी हो गया है। उनका नकारात्मक रवैया पारिवारिक तथा सामाजिक व्यवस्था को मटियामेट कर देगा, अगर समय रहते उनकी चेतना को न जगाया जाए, उन्हें रिश्तों की अहमियत न बताई जाए।

रिश्ते आपको बेहतर बनाते हैं

आपकी मानवीय भावनाओं को पोसते हैं रिश्ते! संवेदनशील बनाते हैं, कर्त्तव्य निभाना सिखलाते हैं, आपको स्वकेिंद्रत होने से बचाते हैं इसीलिए यह आपकी बेहतरी के लिए आवश्यक बन जाते हैं।

सहारा होते हैं रिश्ते

वक्त-बेवक्त काम आते हैं रिश्ते। कितने ही घरों में बच्चे पढ़ाई के लिए या किसी और कारण से दादी, बुआ, मौसी, चाची, मामी के घर रहते हैं। रिश्ते इस तरह ‘ग्रेट सपोर्ट सिस्टम’ बन जाते हैं, जिससे आपको भावनात्मक सुरक्षा, नैतिक बल मिलता है।

रिश्ते हैं सदा के लिए

यह बंधन पल दो पल का साथ नहीं बल्कि जीवनभर का होता है। खून के रिश्ते कुदरत बनाती है, उसे सहेजकर रखते हैं आप। इन्हें तोड़ना बहुत आसान है अक्सर गलतफहमियों के चलते ही मनमुटाव होते हैं। संवाद बना रहे, मन साफ हो तो गलतफहमियां ज्यादा देर तक नहीं टिकती।

रिश्ते अनूठे होते हैं

हर रिश्ते की अपनी मिठास,अपनी गरिमा और अपना मजा है। एक से दूसरे की तुलना करने का कोई औचित्य नहीं है। हर व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व अपनी अस्मिता होती है। उसका अपना स्लॉट है, जिसमें वह फिट है उसे उसी नजर से देखें। सबसे समान आशा न करें क्योंकि हर व्यक्ति अपने में एक द्वीप है। उसके अपने टारगेट्स अपनी महत्वाकांक्षाएं, जरूरतें होती हैं, जिनके अनुसार उसका बिहेवियर भी अलग होगा।

 रिचार्ज करते हैं रिश्ते

आज हर व्यक्ति चिंताओं में डूबा तनावों से घिरा नजर आता है जीने के लिए चारों ओर से उस पर दबाव है। ऐसे में मन की बोझिलता से मुक्त कराते हैं रिश्ते अगर आप अपने उन रिश्तेदारों से मिलते हैं, जिनके साथ बचपन की मधुर यादें जुड़ी हैं तो उन यादों को ताजा करते हुए आपका एड्रेनालिन कुलांचें भरने लगता है। कभी अवसादग्रस्त होने पर आप लो फील कर रहे होते हैं, तब मां का ममतामयी स्पर्श, पिता का सिर पर रखा हाथ आपको कितना सुकून देते हैं। हमारे भीतर जीने की जो ललक है, वह सदा एक सी नहीं रहती। बैटरी जब डिस्चार्ज होने लगती है, यह रिश्ते ही हैं, जो उन्हें रिचार्ज करते हैं। आपको भीतर से बाहर लाकर उत्साहवर्द्वन करते हैं, जीवंतता लाते हैं, एनर्जी देते हैं, नवजीवन का संचार करते हैं।

रिश्तों को कलंकित करती स्वार्थ की काली छाया

खून पुकारता है!’, ‘खून पानी से गाढ़ा होता है’, ‘अपना-अपना होता है’ जैसे अनेक जुमले अचानक थोथे क्यों दिखाई देने लगे? ऐसा लगता है कि हम अपनी संस्कृति को भुला बैठे हैं अथवा आदर्शों को व्यवहार में उतारने के बजाय उनके गीत गाने तक ही सीमित रहे हैं। इन घटनाओं में यदि हम कन्या भ्रूण-हत्याओं और वैवाहिक संबंधों में बढ़ती दरार को भी शामिल कर दें तो तस्वीर काफी भयावह दिखाई देने लगेगी। इस जहरीले वातावरण का दोषी कौन है और इसका समाधान क्या है?

यह प्रश्न समाज के हृदय को आंदोलित करना चाहिए। आखिर, पारिवारिक रिश्तों के बीच कैक्टस कौन बो रहा है? किसकी नजर लगी है, मेरे देश को? यदि इस प्रश्न का उत्तर चाहिए, तो अपने ही मन को टटोलना होगा। क्या हम सचमुच अपने संबंधों के प्रति ईमानदार हैं? कहीं यह सब पिछले कुछ वर्षाें से टीवी चैनलों पर परोसी जा रही तड़क-भड़क, विकृत संस्कृति, कामुकता, विवाहेत्तर संबंधों को अनदेखा करने के परिणाम तो नहीं हैं? दुखद आश्चर्य यह है कि देश के एक वर्ग को इसकी रत्ती-भर भी चिंता नहीं हैं। पश्चिम की अमर्यादित संस्कृति को यहां फलने-फूलने का मौका दिया जा रहा है। ऐसे में, संस्कारविहीन लोग अक्सर हिंसक होकर अपनों की जान लेने तक उतर आते हैं तो आश्चर्य की क्या बात है?

यह भोगवाद की संस्कृति और भौतिक पदार्थों की मृग-मरीचिका का उप-उत्पाद है, जो केवल अपने सुख-सुविधाओं और अहम के आगे सोचती ही नहीं जबकि हमारे सद्ग्रंथ हमें त्यागपूर्वक भोग की शिक्षा देते हैं। पूरे वातावरण को कलुषित करने वाली ऐसी घटनाएं हमारी शिक्षा प्रणाली को भारतीय संस्कृति के नैतिक पक्ष से विमुख करने के प्रति सावधान करती है। समाज में एक दूसरे के प्रति संवेदना हो, आवश्यकता पड़ने पर एक हाथ दूसरे हाथ की मदद करने के लिए खुद-बखुद आगे आना चाहिए।

ऐसे श्रेष्ठ संस्कार राष्ट्र की नई पीढ़ी में कैसे रोपित किये जाएं, यह चिंता पूरे समाज की होनी चाहिए। यह सर्वविदित है कि आज परिवार टूट रहे हैं संयुक्त परिवार एकाकी हो रहे हैं। यह भी शर्मनाक परंतु सत्य है कि अब परिवार तो क्या, उसका हर सदस्य भी एकाकी हो चला है। कुछ लोग पैसे की चमक-दमक और आत्म-केंिद्रत सोच को पारिवारिक तनाव और कटुता का कारण मानते हैं। यदि सचमुच ऐसा है, तो यह कैसी उन्नति है, जिसमें मनुष्य में मनुष्यता का लगातार पतन हो रहा है?

क्या आपका मन आपसे यह प्रश्न नहीं करता कि आखिर कहां पहुंच गए हैं हम और हमारा समाज? आपसी संबंधों में तनाव की परिणति हिंसा में होना सचमुच सिहरन पैदा करता है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। आज, हम एक ऐसे समाज का अंग बनते जा रहे हैं, जहां हर आदमी आत्म-केंिद्रत है उसमें स्वार्थ कूट-कूटकर भरा है कोई किसी की बात ही नहीं सुनना चाहता। अब, हर समय तो कोई आपकी प्रशंसा, स्तुति, वंदना नहीं कर सकता, गलत को गलत भी कहना पड़ता है। यदि परिवार के किसी एक सदस्य को अधिक धन अथवा यश प्राप्त होता है तो बाकी सदस्य उसे ईष्र्या के रूप में क्यों लें?

शादी से पहले जन्मपत्री मिलान का महत्व: सद्गुरूनाथ जी महाराज

विवाह के लिए वर-वधू की जन्मपत्री का मेलन करते समय मंगल ग्रह,नाडी और षडाष्टक का विचार करना अपरिहार्य होता है। आजकल ज्योतिष शास्त्र विषयक पुस्तकों में मंगल का उल्लेख प्रकर्षता के साथ किया जाता है। यदि जन्मकुंडली के 1,4,7,8 तथा 12 वें स्थान में मंगल ग्रह हो तो जातक मंगली माना जाता है।

यदि यह कहकर ज्योतिष शास्त्र चुप बैठ जाता तो इतनी समस्याएं नहीं बढती। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि उपर्युक्त एक नियम के लगभग 450 अपवाद बनाकर उस मंगल को दोष दिया जाता है। इतना होने पर भी यदि कुंडली में मंगल दोष रह जाए तो “गोदावरी दक्षिणतीरवासिनां भौमस्य दोषो नहि विद्यते खलु” कहकर बाकी बची कुंडलियों का छुटकारा करा दिया जाता है। राहु, केतु एवं शनि आदि एक से एक बलवान ग्रह के होते हुए अके ले मंगल का संबंध वैवाहिक जीवन से जोडकर और उसके उपद्रवी स्थान निश्चित करके उसे संघर्षकारक एवं वैधव्यकारक बना दिया गया है। योगायोग से मंगल के कई अपवादों में से एक भी अपवाद उसकी कुंडली के लिए लागू नहीं होता। अब प्रश्न यह उठता है कि इनसे मुक्ति पाने पर क्या निर्वेध वैवाहिक जीवन की गांरटी है। इसका उत्तर नहीं में देना होगा।

जन्मपत्री मिलान

कारण-प्रखर मंगल वर्णित कुंडलियों के कुछ वधू-वरो की गृहस्थियां सुचारू रूप से चल रही हैं। इसके विपरीत दोनों कुंडलियों में मंगल का यत्किंचित दोष न रहने पर भी विवाह के कुछ दिनों बाद अनेक çस्त्रयों को वैधव्य एवं पुरूषों को विधुरत्व प्राप्त होता दिखाई देता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वधू-वरों की जन्मपत्री का मिलान करते समय मंगल के अलावा अन्य बातों का मिलान भी ठीक तरह से करना चाहिए। यदि स्त्री की जन्मकुंडली में दोष हो तो उससे उमाशंकर पूजन विधि एवं वैधव्य परिहारक कुंभ विवाह विधि करवा लें। इसी तरह यदि पुरूष की जन्मकुंडली में विधुर योग हो तो अर्क विवाह करा लें।

अगर विवाह के पूर्व दोनों पक्ष ग्रह यज्ञ करवा लें तो मन की चुभन काफी कम हो जाती है। मंगल ग्रह की तरह नाडी का भी व्यर्थ में हौआ खडा करने से कोई फायदा नहीं है। एक नाडी के कारण संतानोत्पत्ति क्षमता में कमी आती है या कन्या संतति अधिक होती है- ऎसा ज्योतिष शास्त्र का कहना है। ऎसे में दोनों की प्रजनन क्षमता की जांच करवा कर यह देखा जाए कि उनका ब्लड गु्रप एक दूसरे से मेल खाने वाला है अथवा नहीं। एक नाडी दोष के कारण जन्मपत्री का मेल न होने पर आधुनिक वैद्यक शास्त्री से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यह बात षडाष्टक के संबंध में भी लागू होती है। जो राशि एक-दूसरे से 6या 8 क्रम में आती है, वह षडाष्टक होती है। यह षडाष्टक शुभ प्रीति और अशुभ मृत्यु दो प्रकार का होता है। इसमें से मृत्यु षडाष्टक विवाह के लिए त्याज्य है। परंतु षडाष्टक के लिए चंद्र राशि देखें या लग्न राशि, इसका वर्णन ज्योतिष शास्त्र में नहीं है। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है कि वर-वधू निसंकोच संस्कृति, धर्म, सामाजिक बंधन, फै शन, आहार-विहार, अपेक्षाएं, परस्पर स्वभाव एवं प्रवृत्ति, वर्तमान परिस्थिति तथा रिश्ते-नाते आदि की प्रश्नावली तैयार कर लें। इससे यह अंदाज अवश्य हो जाएगा कि उन्हें एक दूसरे से किस हद तक समझौता करना पडेगा।

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