विवाह के लिए वर-वधू की जन्मपत्री का मेलन करते समय मंगल ग्रह,नाडी और षडाष्टक का विचार करना अपरिहार्य होता है। आजकल ज्योतिष शास्त्र विषयक पुस्तकों में मंगल का उल्लेख प्रकर्षता के साथ किया जाता है। यदि जन्मकुंडली के 1,4,7,8 तथा 12 वें स्थान में मंगल ग्रह हो तो जातक मंगली माना जाता है।
यदि यह कहकर ज्योतिष शास्त्र चुप बैठ जाता तो इतनी समस्याएं नहीं बढती। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि उपर्युक्त एक नियम के लगभग 450 अपवाद बनाकर उस मंगल को दोष दिया जाता है। इतना होने पर भी यदि कुंडली में मंगल दोष रह जाए तो “गोदावरी दक्षिणतीरवासिनां भौमस्य दोषो नहि विद्यते खलु” कहकर बाकी बची कुंडलियों का छुटकारा करा दिया जाता है। राहु, केतु एवं शनि आदि एक से एक बलवान ग्रह के होते हुए अके ले मंगल का संबंध वैवाहिक जीवन से जोडकर और उसके उपद्रवी स्थान निश्चित करके उसे संघर्षकारक एवं वैधव्यकारक बना दिया गया है। योगायोग से मंगल के कई अपवादों में से एक भी अपवाद उसकी कुंडली के लिए लागू नहीं होता। अब प्रश्न यह उठता है कि इनसे मुक्ति पाने पर क्या निर्वेध वैवाहिक जीवन की गांरटी है। इसका उत्तर नहीं में देना होगा।
कारण-प्रखर मंगल वर्णित कुंडलियों के कुछ वधू-वरो की गृहस्थियां सुचारू रूप से चल रही हैं। इसके विपरीत दोनों कुंडलियों में मंगल का यत्किंचित दोष न रहने पर भी विवाह के कुछ दिनों बाद अनेक çस्त्रयों को वैधव्य एवं पुरूषों को विधुरत्व प्राप्त होता दिखाई देता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वधू-वरों की जन्मपत्री का मिलान करते समय मंगल के अलावा अन्य बातों का मिलान भी ठीक तरह से करना चाहिए। यदि स्त्री की जन्मकुंडली में दोष हो तो उससे उमाशंकर पूजन विधि एवं वैधव्य परिहारक कुंभ विवाह विधि करवा लें। इसी तरह यदि पुरूष की जन्मकुंडली में विधुर योग हो तो अर्क विवाह करा लें।
अगर विवाह के पूर्व दोनों पक्ष ग्रह यज्ञ करवा लें तो मन की चुभन काफी कम हो जाती है। मंगल ग्रह की तरह नाडी का भी व्यर्थ में हौआ खडा करने से कोई फायदा नहीं है। एक नाडी के कारण संतानोत्पत्ति क्षमता में कमी आती है या कन्या संतति अधिक होती है- ऎसा ज्योतिष शास्त्र का कहना है। ऎसे में दोनों की प्रजनन क्षमता की जांच करवा कर यह देखा जाए कि उनका ब्लड गु्रप एक दूसरे से मेल खाने वाला है अथवा नहीं। एक नाडी दोष के कारण जन्मपत्री का मेल न होने पर आधुनिक वैद्यक शास्त्री से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यह बात षडाष्टक के संबंध में भी लागू होती है। जो राशि एक-दूसरे से 6या 8 क्रम में आती है, वह षडाष्टक होती है। यह षडाष्टक शुभ प्रीति और अशुभ मृत्यु दो प्रकार का होता है। इसमें से मृत्यु षडाष्टक विवाह के लिए त्याज्य है। परंतु षडाष्टक के लिए चंद्र राशि देखें या लग्न राशि, इसका वर्णन ज्योतिष शास्त्र में नहीं है। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है कि वर-वधू निसंकोच संस्कृति, धर्म, सामाजिक बंधन, फै शन, आहार-विहार, अपेक्षाएं, परस्पर स्वभाव एवं प्रवृत्ति, वर्तमान परिस्थिति तथा रिश्ते-नाते आदि की प्रश्नावली तैयार कर लें। इससे यह अंदाज अवश्य हो जाएगा कि उन्हें एक दूसरे से किस हद तक समझौता करना पडेगा।